“ जब मनुष्य के जीवन में "स्वयं का बोध करना, अर्थात् स्वयं के वास्तविक स्वरूप को जानना ही एकमात्र लक्ष पूर्ण निर्धार हो जाये, एवं हृदय में यदि सच्ची प्यास और उमंग हो, तब ख़ुद के लक्ष को अंजाम तक पहुँचाने हेतु, पूरा अस्तित्व आपकी सहायता करने में जुट जाता है... ”
- Maitreya
“ हे धरती माँ के अमूल्य स्तंभ... अब समय नहीं है लूल होने का... आज समय है पुरातन युग की भांति स्थिर और सशक्त होने का ।
धरती का संतुलन स्थापित करने हेतु आपको पुनः सशक्त होना ही होगा । ”
बिखरकर नहीं अब संग चले... साधु संतो की करुणा होती जग कल्याण, इस जग में चैन अमन का आप ही तो आधार।
Continue Readingआप ही राष्ट्र के उज्जवल भविष्य के निर्माता हो आपके हाथों में ही भारत भूमि के उत्तराधिकारी का घड़तर है।
Continue Readingबिखरकर नहीं अब संग चले। सभी राजनीतिज्ञ की बुद्धि जब एक हो कर कार्य करेगी, तब होगा सही मे राष्ट्र का उत्थान ।
Continue Readingवेतन उतना ही अच्छा, जीतने के आप अधिकारी हो। यही तो हमारे पुरातन वैदिक चिकित्सकों की रीति थी... स्वार्थ से बढ़कर, स्वास्थ्य होता है।
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