“बुद्धि में विवेक जगाकर, स्वयं चिंतन करे... यदि हवा, पानी, प्रकाश, इत्यादि इतना सरल सहज उपलब्ध है, तो फ़िर ईश्वर कैसे दुर्गम हो सकते है.!! इसीलिए मन की ग्रंथि को तोड़े... क्योंकि, ईश्वर प्राप्ति दुर्गम नहीं, आसान है। करना बस इतना ही है, कि अपने "अहम्" के अस्तित्व को पूर्णतः मिटा देना है। खुद का अहंकार ही "ईश्वर-मिलन" में बाधा रूप है और प्रेम ही एक ऐसी ढाल है, जो अहंकार की तलवार को पराजित करने में सक्षम है। इसलिए हृदय से घृणा को मिटाकर, "प्रेम" के दीप प्रज्वलित करें।”